Friday 1 June 2012

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (एमएनआरईजीए) (MNREGA)

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (एमएनआरईजीए) (MNREGA) एक भारतीय रोजगार गारंटी योजना है, जिसे 25 अगस्त 2005 को विधान द्वारा अधिनियमित किया गया गया. यह योजना प्रत्येक वित्तीय वर्ष में किसी भी ग्रामीण परिवार के उन वयस्क सदस्यों को 100 दिन का रोजगार उपलब्ध कराती है जो प्रतिदिन 100 रुपये की सांविधिक न्यूनतम मजदूरी पर सार्वजनिक कार्य-सम्बंधित अकुशल मजदूरी करने के लिए तैयार हैं. 2010-11 वित्तीय वर्ष में इस योजना के लिए केंद्र सरकार का परिव्यय 40,100 करोड़ रुपए है.
इस अधिनियम को ग्रामीण लोगों की क्रय शक्ति को बढ़ाने के उद्देश्य से शुरू किया गया था, मुख्य रूप से ग्रामीण भारत में रहने वाले लोगों के लिए अर्ध-कौशलपूर्ण या बिना कौशलपूर्ण कार्य, चाहे वे गरीबी रेखा से नीचे हों या ना हों. नियत कार्य बल का करीब एक तिहाई महिलाओं से निर्मित है. सरकार एक कॉल सेंटर खोलने की योजना बना रही है, जिसके शुरू होने पर शुल्क मुक्त नंबर 1800-345-22-44 पर संपर्क किया जा सकता है. शुरू में इसे राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (NREGA) कहा जाता था, लेकिन 2 अक्टूबर 2009 को इसका पुनः नामकरण किया गया.

अनुक्रम

  [छुपाएँ] 
  • 1 राजनीतिक पृष्ठभूमि
  • 2 योजना
    • 2.1 प्रक्रिया
  • 3 इतिहास और अनुदान
  • 4 क्रियान्वयन
  • 5 कार्य/गतिविधियां
  • 6 आलोचनाएं
  • 7 इन्हें भी देखें
  • 8 संदर्भ
  • 9 बाहरी लिंक

[संपादित करें]राजनीतिक पृष्ठभूमि

इस अधिनियम को वाम दल द्वारा समर्थित यूपीए गठबंधन सरकार द्वारा लाया गया था. कई लोगों का मानना है कि इस परियोजना का वादा भारतीय आम चुनाव, 2004 में यूपीए के पुनार्विजयी होने के प्रमुख कारणों में से एक था.
बेल्जियम में जन्मे और दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनोमिक्स के एक अर्थशास्त्री, डॉ. ज्यां द्रेज इस परियोजना के लिए प्रमुख रूप से प्रभावशाली रहे.

[संपादित करें]योजना

यह अधिनियम, राज्य सरकारों को MNREGA "योजनाओं" को लागू करने के निर्देश देता है. MGNREGA के तहत, केन्द्र सरकार मजदूरी की लागत, माल की लागत का 3/4 और प्रशासनिक लागत का कुछ प्रतिशत वहन करती है. राज्य सरकारें बेरोजगारी भत्ता, माल की लागत का 1/4 और राज्य परिषद की प्रशासनिक लागत को वहन करती है. चूंकि राज्य सरकारें बेरोजगारी भत्ता देती हैं, उन्हें श्रमिकों को रोजगार प्रदान करने के लिए भारी प्रोत्साहन दिया जाता है.
हालांकि, बेरोजगारी भत्ते की राशि को निश्चित करना राज्य सरकार पर निर्भर है, जो इस शर्त के अधीन है कि यह पहले 30 दिनों के लिए न्यूनतम मजदूरी के 1/4 भाग से कम ना हो, और उसके बाद न्यूनतम मजदूरी का 1/2 से कम ना हो. प्रति परिवार 100 दिनों का रोजगार (या बेरोजगारी भत्ता) सक्षम और इच्छुक श्रमिकों को हर वित्तीय वर्ष में प्रदान किया जाना चाहिए.

[संपादित करें]प्रक्रिया

ग्रामीण परिवारों के वयस्क सदस्य, ग्राम पंचायत के पास एक तस्वीर के साथ अपना नाम, उम्र और पता जमा करते हैं. जांच के बाद पंचायत, घरों को पंजीकृत करता है और एक जॉब कार्ड प्रदान करता है. जॉब कार्ड में, पंजीकृत वयस्क सदस्य का ब्यौरा और उसकी फोटो शामिल होती है. एक पंजीकृत व्यक्ति, या तो पंचायत या कार्यक्रम अधिकारी को लिखित रूप से (निरंतर काम के कम से कम चौदह दिनों के लिए) काम करने के लिए एक आवेदन प्रस्तुत कर सकता है. आवेदन दैनिक बेरोजगारी भत्ता आवेदक को भुगतान किया जाएगा.
इस अधिनियम के तहत पुरुषों और महिलाओं के बीच किसी भी भेदभाव की अनुमति नहीं है. इसलिए, पुरुषों और महिलाओं को समान वेतन भुगतान किया जाना चाहिए. सभी वयस्क रोजगार के लिए आवेदन कर सकते हैं.

[संपादित करें]इतिहास और अनुदान

यह योजना 2 फरवरी, 2006 को 200 जिलों में शुरू की गई, जिसे 2007-2008 में अन्य 130 जिलों में विस्तारित किया गया और 1 अप्रैल, 2008 तक अंततः भारत के सभी 593 जिलों में इसे लागू कर दिया गया. 2006-2007 में परिव्यय 110 बीलियन रुपए था, जो 2009-2010 में तेज़ी से बढ़ते हुए 391 बीलियन रूपए हो गया (पिछले 2008-2009 बजट की तुलना में राशि में 140% वृद्धि). सबसे पहले पंचायत द्वारा एक प्रस्ताव ब्लॉक कार्यालय में दिया जाता है और फिर ब्लॉक कार्यालय निर्णय लेता है कि काम मंजूर किया जाना चाहिए या नहीं.

[संपादित करें]क्रियान्वयन

भारत का नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी)(CAG) ने MGNREGA के कार्यान्वयन के प्रदर्शन लेखापरीक्षा में इस अधिनियम के कार्यान्वयन में "बड़ी कमियों" को पाया है. इस योजना को फरवरी 2006 में 200 जिलों में शुरू किया गया था और अंत में 593 जिलों तक विस्तारित किया गया. 2008-09 के दौरान 4,49,40,870 ग्रामीण परिवारों को NREGA के तहत रोजगार उपलब्ध कराया गया, जहां प्रत्येक परिवार में 48 कार्य दिवस का राष्ट्रीय औसत था.

[संपादित करें]कार्य/गतिविधियां

MGNREGA ग्रामीण विकास और रोजगार के दोहरे लक्ष्य को प्राप्त करता है. MGNREGA यह उल्लेख करता है कि कार्य को ग्रामीण विकास गतिविधियों के एक विशिष्ट सेट की ओर उन्मुख होना चाहिए जैसे: जल संरक्षण और संचयन, वनीकरण, ग्रामीण संपर्क-तंत्र, बाढ़ नियंत्रण और सुरक्षा जिसमें शामिल है तटबंधों का निर्माण और मरम्मत, आदि. नए टैंक/तालाबों की खुदाई, रिसाव टैंक और छोटे बांधों के निर्माण को भी महत्व दिया जाता है. कार्यरत लोगों को भूमि समतल, वृक्षारोपण जैसे कार्य प्रदान किये जाते हैं.

[संपादित करें]आलोचनाएं

इस योजना की काफी आलोचना भी हुई है, और तर्क दिया गया कि यह योजना भी गरीबी उन्मूलन की अन्य योजनाओं से अधिक प्रभावी नहीं है, जहां प्रमुख अपवाद राजस्थान है.
पहली आलोचना वित्तीय है. MGNREGA, दुनिया में अपनी तरह की सबसे बड़ी पहलों में से एक है. वित्तीय वर्ष 2006-2007 के लिए राष्ट्रीय बजट 113 बीलियन रुपए था (लगभग यूएस$2.5bn और सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 0.3%) और अब पूरी तरह चालू होकर इसकी लागत 2009-2010 वित्तीय वर्ष में 391 बीलियन रुपये है. ज्यां द्रेज व अन्य लोगों का सुझाव था कि इसका वित्त पोषण उन्नत कर प्रशासन और सुधारों के माध्यम से किया जा सकता है, जबकि अभी तक कर-जीडीपी अनुपात वास्तव में गिरता जा रहा है. ऐसी आशंका है कि इस योजना की लागत जीडीपी का 5% हो जायेगी.
एक अन्य महत्वपूर्ण आलोचना यह है कि सार्वजनिक कार्य योजनाओं का अंतिम उत्पाद (जैसे जल संरक्षण, भूमि विकास, वनीकरण, सिंचाई प्रणाली का प्रावधान, सड़क निर्माण, या बाढ़ नियंत्रण) असुरक्षित हैं जिन पर समाज के अमीर वर्ग कब्जा कर सकते हैं. मध्य प्रदेश में NREGA के एक निगरानी अध्ययन में दिखाया गया कि इस योजना के तहत की जा रही गतिविधियां सभी गावों में कमोबेश मानकीकृत हो गई थी, जिसमें स्थानीय परामर्श नहीं के बराबर था.
आगे की चिंताओं में यह तथ्य शामिल है कि स्थानीय सरकार के भ्रष्टाचार के कारण समाज के कुछ ख़ास वर्गों को बाहर रखा जाता है. ऐसा भी पाया गया कि स्थानीय सरकारों ने काम में लगे व्यक्तियों की वास्तविक संख्या से अधिक नौकरी कार्डों का दावा किया ताकि आवश्यकता से अधिक फंड को हासिल किया जा सके, जिसे फिर स्थानीय अधिकारियों द्वारा गबन कर लिया जाता है. जॉब कार्ड प्राप्त करने के लिए 50 रुपये तक की रिश्वत दी जाती है.

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